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पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,जिसमें मिला दो उसी के जैसा**

वरिष्ठ पत्रकार चन्दन कुमार सिंह

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,जिसमें मिला दो उसी के जैसा***।                                                                यह कोई फिल्मी गीत नहीं ,यह बिहार की  प्रशासनिक व्यवस्था पर लागु होता हैं ।वर्तमान में प्रशासनिक चौक्सी  की आवश्यकता है ।प्रशासनिक महकमा को या तो अपने कर्तव्यों का ज्ञान नहीं हैं या सब कुछ जान के भी अंजान है ।बात यहाँ स्वास्थ्य व्यवस्था का कर रहे हैं ।स्वास्थ्य सेवा के प्रति समर्पित, पृथ्वी पर भगवान का दुसरा नाम चिकित्सक का है।आम जन जब चिकित्सक के पास अपना जीवन समर्पित कर स्वस्थ करने की याचना करते हैं । लेकिन आज के परिवेश में स्वस्थ व्यवस्था को व्यवसायिक बना दिया गया है।दलालो के मध्यम से अस्पतालों द्वारा रोगी को क्लाइंट के रुप में फसया जाता हैं और पृथ्वी के भगवान द्वारा शोसन किया जाता हैं ।कुछ जगहों पर तो बड़े बड़े अपराधियों ने भी बड़ा अस्पताल बना कर इलाज के नाम पर मोटी रकम उगाही करते हैं ।जिसका जीता जागता उदाहरण है मुजफ्फरपुर आँख अस्पताल एवं समस्तीपुर का गर्भासय काण्ड है ।जँहा अपने लाभ के लिए अस्पताल का कारनामा रास्ट्रीय स्तर पर आ गया । आँख क्या होता हैं यह तो आंख खो चूकें लोग ही बता सकते हैं ।खिलवाड़ कर रहे लोग एक बार कल्पना करें मेरा आँख खो जाएगा तो क्या होगा? स्वास्थ्य सेवा के अधिकारी आखिर क्यों भुल जाते है कि पढाई के साथ साथ ट्रेनिग में भी उन्हें नसिहत मिला होगा सामुदायिक स्वास्थ्य का ।लगमा काण्ड में दलालों को मुक्त कर दिया गया ।शायद विभाग को पता भी नहीं होगा कि रोसड़ा स्थित उक्त अस्पताल द्वारा सैंकड़ों ऑपरेशन किया जा चुका है ।क्या मुजफ्फरपुर की घटना को दुहराने तक स्वास्थ विभाग आंखें बन्द किये हुए हैं ।अगर नहीं तो अब तक क्यों कोई अधिकारी सामने नहीं आये? आखिर क्यों नहीं आप पर यह इल्जाम लगे कि पानी की तरह आप रंग बदल रहे हैं? भगवान का दर्जा प्राप्त है इसे मिटने ना द�


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