बदल गया नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे की पॉलिक्टिस का चोला, एक मुसलमान विरोधी तो दूसरे सेक्युलर हो गए

बदल गया नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे की पॉलिक्टिस का चोला, एक मुसलमान विरोधी तो दूसरे सेक्युलर हो गए

 

राजनीति भी कितनी विचित्र होती है, इसका नमूना आप इसी से देख सकते हैं कि आज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर मुसलमानों के हितों की अनदेखी किए जाने का आरोप लगाया जा रहा है तो शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे सेक्युलर नेता का चोला पहने घूम रहे हैं. एक बात और, नीतीश कुमार इस बात का ढिंढोरा पीट रहे हैं उन्होंने अपने 20 साल के शासनकाल में मुसलमानों के लिए बहुत काम किया तो उद्धव ठाकरे खुद को भाजपा से भी बड़ा हिन्दुत्ववादी पार्टी के नेता के तौर पर स्थापित किए जाने की कोशिश कर रहे हैं. मतलब वक्फ बिल पास होने के बाद एक दीवार सी खड़ी करने की कोशिश की जा रही है कि जो बिल के साथ था, वो मुसलमानों के खिलाफ है और जो बिल के खिलाफ था, वो मुसलमानों का सबसे बड़ा हितचिंतक है.

 

 

 

वक्फ बिल के आने से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष नेता मानते थे. वक्फ बिल पर बहस के दौरान लोकसभा में मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कहा था कि नीतीश कुमार को धर्मनिरपेक्षता के लिए किसी की सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. खुद नीतीश कुमार विभिन्न मंचों से अल्पसंख्यकों के लिए किए गए कामों की फेहरिस्त गिनाने में जुटे हुए थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने वक्फ बिल पर सरकार का साथ दिया, वे मुसलमान विरोधी करार दिए गए.

 

इमारत ए शरिया जैसे कुछ संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार कर दिया. विरोधी दलों के नेताओं में संसद में दिए अपने भाषणों में नीतीश कुमार पर अल्पसंख्यकों के साथ छल करने का आरोप लगाया. ऐसा लग रहा था कि वक्फ बिल के पास होने या न पास होने के लिए अकेले जिम्मेदार नीतीश कुमार ही हैं. कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने अपने भाषण में कहा, नीतीश कुमार जी! वक्फ कोई खैरात नहीं, जिसे सियासत की थाली में परोस दिया जाए. ऐसे तमाम वक्ताओं ने जितना सरकार को नहीं कोसा, उससे ज्यादा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कोसा.

 

इस बारे में कोई शक नहीं कि 2010 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुसलमानों के एक बड़े तबके का वोट हासिल हुआ था. तब राजद की बुरी हालत हो गई थी और एनडीए ने रिकॉर्ड वोट हासिल करके सरकार बनाई थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में जब राष्ट्रीय जनता दल एक बार फिर से मजबूत हुई तो मुसलमान धीरे-धीरे फिर से वापस अपनी पुरानी पार्टी की ओर जुड़ने लगे. 2020 के विधानसभा चुनाव में तो जेडीयू को मुसलमानों के बहुत कम वोट हासिल हुए और उसके एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को जीत हासिल नहीं हुई थी.

 

2022 में जब नीतीश कुमार फिर से राजद के साथ आए और राजद पहले से और अधिक मजबूत हुआ, तब मुसलमान पूरी तरह जेडीयू के साथ हो लिए. आज स्थिति यह है कि पसमांदा मुसलमानों के थोड़े से हिस्से को छोड़ दें तो मुस्लिम वोटबैंक पूरी तरह राजद के साथ है और शायद जेडीयू का वक्फ बिल को समर्थन देना इसी का नतीजा है. नीतीश कुमार हर मंच से दावा करते हैं कि उन्होंने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया और उन्होंने किया भी है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. फिर भी मुसलमानों का एकमुश्त वोट राजद को मिलता है तो फिर नीतीश कुमार की पार्टी क्यों वक्फ बिल का समर्थन न करे.

 

सेक्युलर नेताओं की लिस्ट में अग्रणी उद्धव ठाकरे

उधर, मुंबई से खबर है कि संजय निरूपम ने उद्धव ठाकरे पर आरोप लगाया है कि वक्फ बिल के खिलाफ संसद में वोट डालने के लिए उन्होंने एक एक कर सभी सांसदों को खुद ही फोन किया था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने से पहले उद्धव ठाकरे हिन्दुत्व के सबसे बड़े फायरब्रांड नेता हुआ करते थे. शिवसेना और उद्धव ठाकरे की हिन्दुत्व के आगे भाजपा भी कभी कभी बौनी पड़ जाती थी, लेकिन कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस के साथ मिलकर जैसे ही उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की सरकार बनाई, वे सेक्युलर नेता बनने लगे.

अल्पसंख्यकों का साथ नहीं दिला पाई सत्ता

हिन्दुत्व की राजनीति से उभरे उद्धव ठाकरे पिछले कुछ सालों में सबसे बड़े सेक्युलर नेता बनने के कगार पर खड़े हैं. यहां तक कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले कुछ मुस्लिम संगठनों ने महाविकास अघाड़ी को एक ज्ञापन देकर अपनी कुछ मांगें रखी थीं और बदले में अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट दिलाने की बात कही थी. महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने उस ज्ञापन को न केवल स्वीकार किया, बल्कि उनमें से कुछ को तो अपने घोषणापत्र में स्थान भी दिया था. हालांकि विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की बुरी तरह पराजय हुई थी और उद्धव ठाकरे का फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना सपना ही रह गया था.

 

मूल वोट बैंक को छोड़ सेक्युलर छवि बना रहे

उद्धव ठाकरे विधानसभा चुनाव में मिले ठोकर से लगता है कुछ सीख नहीं पाए हैं और अपना मूल वोट बैंक गंवाकर वे सेक्युलर खेमे की राजनीति करने लगे हैं. शायद उन्हें इस बात का भान नहीं है कि उनकी तरह सेक्युलर राजनीति करने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है. जब जनता को सेक्युलर राजनेता चुनने का मौका आएगा, तो वह उद्धव ठाकरे की जगह कांग्रेस, शरद पवार वाली एनसीपी को क्यों नहीं चुनेगी, जिन्हें लंबे समय तक सेक्युलर राजनीति करने का अनुभव प्राप्त है.

नीतीश और उद्धव, अरसे तक रहे भाजपा के साथ

नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे में खास बात यह है कि दोनों ने लंबे समय तक भाजपा के साथ रहकर राजनीति की है. दोनों में अंतर यह है कि उद्धव ठाकरे ने एनडीए छोड़ा तो फिर उन्हें पीछे मुड़ने का मौका नहीं मिला और नीतीश कुमार इस बीच कई बार भाजपा के साथ गए और फिर बेवफा हो गए. अभी फिर वे भाजपा के साथ रहकर राजनीति कर रहे हैं. नीतीश कुमार को अब हर मंच से कसम खाते हैं कि वे भाजपा का साथ छोड़कर कभी नहीं जाएंगे. नीतीश कुमार पहले सेक्युलर नेता था और अब वक्फ बिल को अपना समर्थन दे चुके हैं. उद्धव ठाकरे खांटी हिन्दुत्व की राजनीति से आए हैं और सेक्युलर नेता का सर्टिफिकेट पा रहे हैं.

Leave a Comment

error: Content is protected !!