



*लम्बे समय के इंतजार के बाद आखिर पहुंच ही गई अलौली स्टेशन तक ट्रेन – सुमन सौरभ*
संजय भारती
समस्तीपुर। अलौली रेलवे स्टेशन से ट्रेन परिचालन के बाद पत्रकार सुमन सौरभ कहते हैं कि अप्रैल का ही महीना था। 16 अप्रैल का दिन, जब सन 1853 वर्ष में पहली बार भारत में मुंबई के बोरी बंदर स्टेशन से ठाणे के बीच ट्रेन चली थी। उन्होंने बताया कि 172 वर्ष हो गए इस इतिहास को बने। कई पीढ़ियां बीत गईं। दुनिया पूरी तरह बदल गई। और इस बदलती दुनिया में रेलगाड़ियां केवल आवागमन का साधन ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन, हमारे सामाजिक जीवन, हमारे आर्थिक जीवन, हमारी संस्कृति, हमारी लोक संस्कृति, कथा कहानियों, गीतों का अहम हिस्सा बन गईं। लेकिन बिहार में एक इलाका आज तक ऐसा भी था, जहां रेल की पटरियां नहीं बिछी थीं, जहां इंजन की सीटी सुनने के लिए स्थानीय लोग बरसों से इंतज़ार करते रहे। जी हां, बिहार के खगड़िया जिले का अलौली प्रखण्ड, कोसी और बागमती नदियों की गोद में बसा एक ऐसा ठिकाना, जहाँ प्रकृति और मेहनत का अनोखा मेल है। कोसी की उफनती लहरें और बागमती की शांत धारा इस गाँव को जीवन देती हैं, मगर बाढ़ के मौसम में यही नदियाँ नटखट बच्चे-सी शरारत भी करती हैं। सुबह सूरज की किरणें खेतों में लहराती सरसों को चूमती हैं, और शाम को गायों की घंटियाँ नदियों के संगीत के साथ ताल मिलाती हैं। पत्रकार सुमन सौरभ ने कहा अलौली कृषि और पशुपालन के लिए प्रसिद्ध है। यहां की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि यहाँ का मक्का इतना स्वादिष्ट होता है, मानो हर दाने में कोसी की मिठास समाई हो। कहते हैं, गाँव का नाम प्राचीन ‘आलोक’ मंदिर से पड़ा, जिसके किस्से बुजुर्ग चाय की चुस्कियों के साथ सुनाते हैं। मगर 24 अप्रैल 2025 को, इस गाँव ने इतिहास रच दिया। आजादी के 77 साल बाद, अलौली रेलवे स्टेशन पर पहली यात्री ट्रेन का हॉर्न बजा, और कोसी के किनारे खुशी का मेला सज गया। उन्होंने कहा आजादी के बाद का इंतजार: ट्रेन क्यों भटकी? बात 1998 की है, जब अलौली-खगड़िया रेलखंड का नींव-पत्थर रखा गया, तो गाँव में मिठाइयाँ बँटी थी। तत्कालीन रेल मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान जी ने इसे कोसी के लिए ‘विकास का इंजन’ बताया था। मगर सपना हकीकत बनने में 26 साल लग गए। फंड की कमी, जमीन की उलझनें और सरकारी फाइलों की धूल-हर कदम पर रुकावट। स्टेशन बन गया, पटरियाँ बिछ गईं, मगर सिर्फ मालगाड़ियाँ दौड़ती थी। बच्चे पटरियों पर क्रिकेट खेलते, और बुजुर्ग स्टेशन की बेंच पर ट्रेन का इंतजार करते। गाँव वाले मजाक में कहते, “हमारी ट्रेन तो दिल्ली की फाइलों में सो रही है।” देरी की पहली वजह रही कोसी और बागमती का बाढ़ वाला तांडव। हर साल नदियाँ उफनतीं, और रेल पटरियों का काम डूब जाता। पटरियाँ बिछतीं, तो कोसी उन्हें अपने साथ बहा ले जाती। मजदूर हाँफते, और मशीनें कीचड़ में धँस जातीं। दूसरी, पैसों की किल्लत। रेलवे का बजट बड़े शहरों की चमकती मेट्रो और बुलेट ट्रेनों पर लुटता रहा। अलौली जैसे गाँव, जहाँ मक्का और दूध की धूम है, उनकी फाइलें मंत्रालयों की अलमारियों में धूल खाती रहीं। तीसरी, जमीन का झगड़ा। रेलखंड के लिए खेत चाहिए थे, जहाँ मक्का लहराता था। मगर मुआवजे के वादे और कागजी उलझनों ने सब गड़बड़ कर दिया। किसान अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं थे और बातचीत में सालों बीत गए। चौथी वजह रही सरकारी फाइलों की नींद। अलौली की ट्रेन का ख्वाब कागजों में कैद होकर खर्राटे मारता रहा। गाँव वाले हँसकर कहते, “हमारी ट्रेन तो दिल्ली की ट्रैफिक में फँस गई, या शायद किसी बाबू ने फाइल को चाय का टोस्टर बना लिया।” फिर भी अलौली का जोश कम नहीं हुआ। स्टेशन बन गया, पटरियाँ बिछ गईं, मगर सालों तक सिर्फ मालगाड़ियाँ दौड़ती थीं। बच्चे पटरियों पर गिल्ली-डंडा खेलते, और बुजुर्ग स्टेशन की बेंच पर बैठकर मक्के की भुट्टा चबाते हुए ट्रेन की राह ताकते। हर मालगाड़ी की सिटी पर दिल धक्-धक् करता, मगर यात्री ट्रेन का अता-पता नहीं। वह चमकता दिन 24 अप्रैल 2025 अलौली स्टेशन 24 अप्रैल को किसी दुल्हन-सा सज गया। गेंदे की मालाएँ लटक रही थीं, गुब्बारे हवा में नाच रहे थे, और ढोल-नगाड़ों की थाप पर गाँव वाले थिरक रहे थे। बच्चे चिल्ला रहे थे, “ट्रेन आ रही है!” औरतें मंगल गीत गा रही थीं और मर्द दूध की कुल्हड़ और मक्के की रोटी बाँट रहे थे। मिठाइयाँ चल रही थीं और हवा में कोसी की मिठास घुल गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मधुबनी जिले से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। ठीक दोपहर 12:30 बजे, जब मधुबनी से वीडियो कॉल पर ट्रेन नंबर 05594 (अलौली-सहरसा उद्घाटन स्पेशल) को हरी झंडी मिली, तो स्टेशन खुशी के शोर से गूँज उठा। ट्रेन की सिटी बजी, और गाँव वालों की आँखें चमक उठीं। यह सिर्फ एक ट्रेन नहीं थी-यह थी 26 साल की तपस्या, अनगिनत सपनों, और मक्का-दूध की मेहनत की जीत। जैसे ही ट्रेन ने पटरियों पर कदम रखा, बच्चों ने गुब्बारे छोड़े, और बूढ़ों ने कोसी की ओर देखकर मुस्कुराया। ट्रेन का रास्ता गाँव से दुनिया की सैर, यह ट्रेन अलौली को सहरसा और समस्तीपुर से जोड़ती है। रास्ते में कामाथान, खगड़िया, मानसी, और सिमरी बख्तियारपुर जैसे स्टेशन पड़ते हैं। 25 अप्रैल 2025 से यह नियमित चल रही (नंबर 75251/75252)। यह ट्रेन किसानों को अन्य शहरों के बाजारों तक ले जा रही है, जहाँ उनका मक्का और दूध सोने-सा बिकेगा। बच्चे कॉलेज जाएँगे, मरीज अस्पताल पहुँचेंगे, और औरतें अपने हुनर को शहरों तक ले जाएँगी। गाँव की चहक सपनों की रफ्तार
गांव के एक वृद्ध व्यक्ति ने ठहाका मारकर कहा, “पहले खगड़िया जाने के लिए साइकिल पर बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अब ट्रेन आने से मेरी सारी परेशानी का समाधान हो गया।” कॉलेज की छात्रा जो पास के दूसरे जिले के कॉलेज में पढ़ती है, उसने चहकते हुए कहा, “कॉलेज अब पलक झपकते पहुँच जाऊँगी। ट्रेन की खिड़की से कोसी का नजारा, और जेब में पैसे भी बचेंगे।” गाँव की महिलाएँ भी इस ट्रेन को अपने लिए वरदान मान रही हैं, क्योंकि अब वे आसानी से बाजार और रिश्तेदारों के पास जा सकेंगी। अलौली अब सिर्फ कोसी और बागमती का किनारा नहीं, बल्कि रेल की पटरियों पर उड़ता एक सितारा है। 26 साल का इंतजार उस हॉर्न में समा गया, जो 24 अप्रैल को बजा। जैसा कि गांव के एक वृद्ध व्यक्ति ने हँसकर कहा, “हमारा मक्का, हमारा दूध और अब हमारी अलौली अब दुनिया की सैर को तैयार है।”