देश के बदलते परिवेश में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ हासिये में खड़ा है
वरिष्ठ पत्रकार चंदन कुमार सिंह
हासिये पर खड़ा भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ । देश के बदलते परिवेश में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ हासिये में खड़ा है ।आदिकाल से ही पत्रकारिता चौथा दर्जा प्राप्त कर मुख्यधारा से बाहर ही रहा है ।देवलोक में नारद मुनिजी को चौथास्तंभ कहा जाता है ।लेकिन उन्हें भी वह सम्मान नहीं मिला जिनके वे हकदार थे।सत्ता के गुरुर में देव लोक से आज के राजनितिक दल भी पत्रकारिता को अपने अनुकूल रखने की चाहत रखते हैं ।सत्ता के गलियारों में भ्रष्टाचार के पगडंडी पर कार्यपालिका की गठजोड़ से देश बर्बादी के चौखट पर खड़ा है ।लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को देश समाज की परिस्तिथियों पर प्रकाश डालना लाजमि है ।लेकिन गाँवों की गलियारियौ से लेकर देश के राजधानी तक सत्ता के नशे में चूर कार्यपालिका एवं विधायिका के लोग जहाँ न्यायपालिका को किनारे कर दिया है वही पत्रकारिता को फोर्थ क्लाश का दर्जा दे दिया है। परिणामस्वरूप लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट पहुँच रहा है । इन परिस्थितियों के लिए पत्रकारिता जगत के कुछ लोग भी जिम्मेदार है ।लेकिन सबसे बड़ा जिम्मेदार मिडिया का व्यवसायिकरण है ।कुछ व्यवसायिक घड़ाने मिडिया की आर में व्यवसाय करने लगे ।फलतः मिडिया की विस्वस्नियता पर प्रश्न चिह्न लगने लगा ।दूसरी ओर स्वतंत्र पत्रकारिता सत्ताधारी लोगों एवं पदाधिकारियों को खटकने लगा ।परिणामस्वरूप स्वतंत्र पत्रकारिता पर लगाम लगाने की प्रचलन सा चल पड़ा है।जिसमें पत्रकारों की हत्या ,मारपीट ,झूठी मुकदमें में फसाने से लेकर अन्य तरह की परतारना सामिल है । अगर समय रहते लोकतंत्रीकरण के अनुयायियों ने अपने चारों स्तंभ के बिच समन्वयन स्थापित करने में सफल नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब भारतीय लोकतंत्र ही धारासायि हो जायेगा