मनरेगा में मजदूरों का मजदूरी 400रुपया प्रतिदिन होनी चाहिए

मनरेगा में मजदूरों का मजदूरी 400रुपया प्रतिदिन होनी चाहिए

 

ग्रामीण भारत की असल तस्वीर अक्सर शहरों की चकाचौंध में ओझल हो जाती है लेकिन सच्चाई ये है कि आज भी लाखों लोग अपने गांवों में दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. खेती पर निर्भरता घटने और रोजगार के स्थायी साधन ना होने की वजह से हर साल बड़ी संख्या में ग्रामीण मजदूर पलायन कर महानगरों की ओर रुख करते हैं. ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ऐसे लोगों के लिए एक भरोसा बन जाए. क्योंकि इसमें कम से कम 100 दिनों का रोजगार और घर के पास काम देने का वादा किया था. लेकिन इस योजना को लेकर हमेशा से ही उथल पुथल रहती है. इन दिनों यह चर्चा है कि मनरेगा मजदूरी दरों में बदलाव क्यों जरूरी है.. इसे समझ लेना जरूरी है.

संसद की रिपोर्ट में क्या खुलासा हुआ
असल में 3 अप्रैल को संसद की ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की. इसमें कहा गया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी महंगाई के मुकाबले नहीं बढ़ी है. मजदूरी इतनी कम है कि मजदूरों का गुजारा भी मुश्किल हो रहा है.

 

दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजना
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में इस पर विस्तृत तरीके से बताया गया कि मनरेगा के तहत 25 करोड़ से ज्यादा मजदूर रजिस्टर्ड हैं. यह योजना हर ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिन का काम देने की गारंटी देती है. लेकिन कम मजदूरी के कारण इसकी प्रभावशीलता घटती जा रही है.

 

कैसे तय होती है मजदूरी
मनरेगा एक्ट की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार मजदूरी तय करती है. हालांकि 2009 में मजदूरी को 100 रुपये पर रोक दिया गया था जिससे कई राज्यों में यह मजदूरी न्यूनतम वेतन से भी कम हो गई. बाद में कोर्ट ने निर्देश दिया कि मजदूरी राज्य के न्यूनतम वेतन से कम नहीं होनी चाहिए.

समिति की सिफारिशें और सरकार की अनदेखी
समय समय पर बनी विभिन्न समितियों ने मनरेगा मजदूरी बढ़ाने और इसे CPI R ग्रामीण महंगाई दर से जोड़ने की सिफारिश की है. लेकिन केंद्र सरकार ने इन सुझावों को लागू नहीं किया. यह कहते हुए कि इससे आर्थिक बोझ बढ़ेगा.

मजदूरी में भारी अंतर
2025-26 के लिए घोषित मजदूरी दरों में राज्य दर राज्य काफी अंतर है. हरियाणा में मजदूरी ₹400 है, जबकि नागालैंड में ₹241 है. कई राज्यों में मनरेगा मजदूरी और कृषि न्यूनतम वेतन में ₹200 से ज्यादा का अंतर है. इससे मजदूर योजना से बाहर हो रहे हैं.

गरिमामय रोजगार का अधूरा सपना
मनरेगा का मकसद ग्रामीण गरीबों को गरिमामय रोजगार देना था. कोविड के समय यह एक बड़ी राहत बनी थी. लेकिन अगर मजदूरों को वाजिब मजदूरी नहीं मिलेगी तो यह योजना अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाएगी. संसद की समिति ने सिफारिश की है कि मजदूरी कम से कम ₹400 प्रति दिन होनी चाहिए.

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