एक अदालत ऐसी… जहां कटघरे में खड़े किए जाते हैं देवी-देवता, सुनाई जाती है सजा
छत्तीसगढ़ का धमतरी जिला आदिवासी बाहु्ल्य क्षेत्र है. कभी यह बस्तर राजघराने की सीमा हुआ करता था. परिवर्तन की दौर में वर्तमान में यह क्षेत्र बस्तर से अलग हो चुका है, लेकिन इस इलाके के आदिवासी समुदाय के लोग आज भी बस्तर राज परिवार की देव परंपरा हर साल निभाते आ रहे हैं. जिस तरह से आम इंसान कोई भी असंवैधानिक काम करते हैं. तो उन्हें न्यायिक प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है. इसी प्रकार यहां पारंपारिक देव अदालत भी चलती है. जहां इष्ट देवी-देवताओं के गलत की सजा के दौरान न्यायालय में खड़ा होना पड़ता है.
दरअसल, हमारे और आपके लिए ये बात भले ही चौंकाने वाली बात हो. मगर धमतरी जिले के अंतिम छोर में बसे आदिवासी समाज के लिए ये बात पुरखों से चली आ रही है. भंगाराव देवी के प्रमुख प्रफुल्ल सामरथ और स्थानीय देव गायता चैतराम मरकाम ने बताया कि आदिवासी समाज की रुढ़िजन्य देवप्रथा परंपरा अनुसार कुलदेवी-देवताओं को भी अपने आप को साबित करना पड़ता है. वो भी बाकायदा अदालत लगाकर ये सब होता है.
यह अनोखी अदालत भंगाराव माई के दरबार में लगती है. जहां भंगाराव माई का दरबार धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई मार्ग में भादो के शुरुआती महीने में लगता है. बस्तर राजघराने से चली आ रहा सदियों पुराने इस दरबार को देवी-देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है.
ऐसा माना जाता है कि भंगाराव की मान्यता के बिना देव सीमा में स्थापित कोई भी देवी-देवता कार्य नहीं कर सकते. हर साल भादों के महीने में आदिवासी देवी-देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई का जात्रा होता है. इस साल भी बड़े ही धूमधाम से गाजेबाजे के साथ लिखमा घुटकल से विधि विधान से कुल देवता की सेवा अर्जी उपरांत देवी देवताओं का आगमन भंगाराव देव ठाना जात्रा में सम्मिलित हुए.
उड़ीसा के देवी और देवता भी हुए सम्मिलित
जहां दर्शन और मनोकामनाएं को लेकर हजारों की संख्या में धमतरी, उड़ीसा और बस्तर के श्रद्धालु यात्रा में पहुंचे. देव परिवारों के प्रमुखो ने बताया कि यात्रा की विधि विधान पुर्वक सेवा अर्जी से देव कार्य का परंपरा अनुसार शुभारंभ हुई. यात्रा के दौरान सोलह परगना सिहावा, बीस कोस बस्तर और सात पाली उड़ीसा के देवी-देवता सम्मिलित हुए.
वहीं, इस देव यात्रा में महिलाओं का शामिल होना परंपरा अनुसार वर्जित है. यह आदिवासी समाज की पुरातन मान्यता है. उनकी अपनी देव पद्धति है. अपनी देवी-देवताओं की सेवा अर्जी परंपरा अनुसार करते हैं. अपनी हर समस्याओं को उनके सामने रखते हैं. ताकि उन पर किसी तरह की विपत्ती न आए मगर जब देवी-देवता उनकी समस्याओं पर खरा नहीं उतरते, यूं कहें कि अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पाते या असफल हो जाते हैं.
अराध्य देवी-देवताओं को मिलती है सजा
गायता पुजारी व ग्रामीण जनों की शिकायत के आधार पर भंगाराव माई के अदालत में देव को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है. जहां इनकी सुनवाई होती है. अगर आरोप लगते हैं या दोषी पाए जाते हैं. तो अराध्य देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है. आदिवासी समाज की परेशानियां दूर नहीं कर पाते तो उन्हें दोषी माना जाता है.
आरोपों की होती है गंभीरता से सुनवाई
भंगाराव की उपस्थिति में कई गांवों से आए. देवी-देवताओं की एक-एक कर देव प्रथा अनुसार अनुसार शिनाख्त किया जाता है. फिर देव परिसर में ही अदालत लगती है. देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है. आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल आदि ग्राम के प्रमुख भी उपस्थित होते है.
तत्काल फैसले पर होती है सुनवाई
दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के दौरान आरोप सिद्ध होने पर तत्काल फैसला भी सुनाया जाता है. देव परिसर के कुछ दूरी पर एक नाला है. इसे आम भाषा में कारागार भी कह सकते हैं. दोष साबित होने पर देवी-देवताओं के लाट, बैरंग, आंगा, डोली आदि को इसी नाले में रवानगी कर दिया जाता है. इस तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है.
इस यात्रा के पश्चात ही आदिवासी समाज की प्रमुख पर्व नवाखाई मनाने का दिन तिथि देव आदेशानुसार निर्धारित होती है. क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य मनोज साक्षी बताते है कि आदिवासी समुदाय वास्तव में प्रकृति और पुरखा पेन शक्ति के पूजक हैं. भंगाराव देवी की जात्रा को अनादिकाल से यह देव परंपरा को सिहावा परगना उड़ीसा और बस्तर के आदिवासी समुदाय निभाते आ रहे हैं.