भगत सिंह की वो महिला साथी, जिससे कांपते थे अंग्रेज, बंबई के गवर्नर पर चलाई थी गोली
बेहद क्रूर अंग्रेज सांडर्स की हत्या 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में हुई. इस घटना को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने बम मार कर अंजाम दिया था. लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस ऐतिहासिक घटना को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका महान वीरांगना दुर्गा भाभी की थी. इस घटना के बाद क्रांतिकारियों को लाहौर में चप्पे चप्पे पर फैले अंग्रेजों से सुरक्षित तरीके से निकाल कर कोलकाता पहुंचा देने वाली भी वह दुर्गा भाभी ही थीं.
आज दुर्गा भाभी की जयंती है. इसलिए यह सही अवसर है कि आज के दिन उनकी कुछ सुनी अनसुनी कहानियों की यहां चर्चा हो जाए. कौशांबी के शहजादपुर में आज ही के दिन साल 1906 में पैदा हुईं दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती था. लेकिन तमाम क्रांतिकारियों के लिए वह अपने जीवन भर दुर्गा भाभी ही रहीं. उनके पिता बांके बिहारी भट्ट गाजियाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे. उनके पति भगवती चरण बोहरा भी क्रांतिकारी थे और 28 मई 1930 को रावी नदी के किनारे बम के परीक्षण के दौरान चपेट में आने से उनकी मौत हो गई थी.
पति की मौत के वक्त दुर्गा भाभी की गोद में उनके बेटे सचिन थे. बावजूद इसके, दुर्गा भाभी देश सेवा में सिर पर कफन बांध लिया. आज सचिन बोहरा इंजीनियर हैं और मेरठ में नौकरी करते हैं. सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारियों को भगाने की कहानी भी हैरान करने वाली है. दरअसल, इस घटना के बाद पुलिस क्रांतिकारियों को चप्पे चप्पे पर तलाश कर रही थी. ऐसे में दुर्गा भाभी ने भगत सिंह को अंग्रेजी सेठ बनाया. फिर राजगुरु को नौकर का रूप दिया और उनके साथ खुद अंग्रेजी मेम के रूप में उनकी पत्नी बनकर चल दी.
उन्होंने अंग्रेजों की आंख में धूल झोंकने के लिए अपने बेटे सचिन को भी अंग्रेज अमीरों के बच्चों का वस्त्र पहनाया और कोलकाता के लिए निकल पड़ी. उनके साथ कमर में माउजर छिपाकर चंद्रशेखर आजाद चल रहे थे, लेकिन वह मथुरा के पंडा के वेष में थे. ट्रेन में भी वह दुर्गा भाभी से थोड़ी दूरी पर बैठे. इस प्रकार यह सभी क्रांतिकारी यहां से निकल भागने में सफल रहे थे. इसी क्रम में साल 1934 में जब दुर्गा भाभी मुंबई में थीं, उन दिनों वह बंबई के गर्वनर हेली का कहर चरम पर था.
दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारी साथियों के साथ बात किया. फैसला हुआ कि हेली को भी वही मौत दी जाए जो सांडर्स को मिली. लेकिन क्रांतिकारियों को पहुंचने में देरी होने लगी. ऐसे में दुर्गा भाभी खुद हाथ में पिस्टल लेकर हेली को मारने निकल पड़ीं. जैसे ही गर्वनर हेली सामने पड़ा, ताबड़तोड़ फायरिंग कर दीं. इसमें हेली तो बच गया, लेकिन दुर्गा भाभी पकड़ी गईं और उन्हें तीन साल का कठोर कारावास हो गया.
लखनऊ में खोला मांटेसरी
जेल से छूटने के बाद दुर्गा भाभी 1940 में मद्रास चली गईं. वहां उन्होंने मेरिया मांटेसरी में शिक्षण कार्य का प्रशिक्षण लिया और फिर वहां से लखनऊ आकर 1940 में ही लखनऊ मांटेसरी की स्थापना की. इस स्कूल की शुरुआत 5 बच्चों की पढ़ाई के साथ हुई थी. आज यह उत्तर प्रदेश का ख्याति नाम कॉलेज है. बताया जाता है कि 1935 में गाजियाबाद प्रवास के दौरान दुर्गा भाभी ने कन्या वैदिक इंटर कालेज में पढ़ाने का भी काम किया था.
गाजियाबाद में हुआ निधन
देश की आजादी के बाद दुर्गा भाभी ने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में गुजारा. 70 के दशक में वह गाजियाबाद आ गईं और यहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली. दुर्गा भाभी की खासियत यह थी कि वह निडर थीं और अंग्रेजों की आंखों में आंख डाल कर बात करती थीं. इसकी वजह से कोई जल्दी से उनके ऊपर शक नहीं करता था और वह अपने क्रांतिकारी साथियों को बचाकर निकाल ले जाने में इसका फायदा उठाती थीं.