शिक्षा विभाग में निती नहीं, नियत बदलने की आवश्यकता हैं ।
वरिष्ठ पत्रकार चंदन कुमार सिंह
शिक्षा के स्तर में हो रहे नित्य ह्रास वास्तव में चिंता का विषय है ।केन्द्र एवं राज्य सरकार का चिंतित होना लाजमि है ।लेकिन इसका मतलब यह कताई नहीं होता कि शिक्षा के स्तर में सुधार के लिये पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक को बदल दिया जाय । भारत जैसे गरीब राष्ट्र में पाठ्यपुस्तक के नाम पर अड़बो रुपये जहाँ लग रहे है वही कागज का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग होता हैं । निजी क्षेत्र के विद्यालयों के द्वारा पुस्तक में फेर बदल कर अविभावको का आर्थिक शोषण करने से बाज नहीं आते हैं। पाठ्यक्रम में बदलाव का नतिजा ये होता हैं कि प्रथम वर्ष में पाठ्यपुस्तक आते एवं शिक्षक को समझते ही सत्र समाप्त हो जाता हैं। परिणामस्वरूप छात्रों की पहुँच आते आते समय निकल जाता है । शिक्षा विभाग को शैक्षणिक व्यवस्था को छोड़ हर व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेदारी दे दी जाती है।यथा जनगणना,मतदान , मतदाता सूची में सुधार आदि आदि।फलतः शिक्षक ककहड़। छोड़ बैल बकड़ी गिणने लगते हैं । शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य में लगे कर्मी को अन्य कार्य में लगना सरकार के नियत प्रश्नचिंह खड़ा करता हैं। विद्यालयों की शैक्षणिक माहौल में लिन शिक्षक अन्य कार्यो के तनाव में करे तो क्या ? लेकिन सरकारी तंत्र से जुड़े सर्वेक्षण कर्ता सरकार की कमी पर पर्दा डाल कर छात्रों एवं शिक्षक को ही कमजोड़ बता देते हैं ।और तो और पाठ्यक्रम रुपी वाट को ही हल्का करने का अनुशंसा कर देते हैं।रिपोर्ट देते समय यह भुल जाते हैं कि यही का छात्र राष्ट्रीय स्तर पर सत प्रतिशत अंक भी लाते हैं। सरकार को चाहिए कि शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करे , शिक्षक की कमी दुर करें, शिक्षक को तनाव मुक्त शिक्षा देने के लिए प्रेरित करें,जो शिक्षक का एकेडमीक कार्य अच्छा ना हो