वो लड़का जिसके प्यार में पागल था मुगल बादशाह, पढ़ें बाबर के समलैंगिक प्यार की पूरी कहानी
कोई आशिक, नंगे-खुद, बर्बाद मुझ जैसे न हो/और तुझ सा कोई बुत बेपरवाह बेरहम न हो… बाबर का लिखा यह शेर बताता है कि उसे उर्दू बाजार के उस लड़के से किस कदर प्यार था. उस लड़के की पहली झलक देखने के बाद बाबर ऐसा पागल हुआ कि उसके लिए शायरी लिखने लगा. उसके जेहन वो लड़का कुछ इस कदर दर्ज हुआ कि दिन-रात उसके प्यार में डूबा रहने लगा. वो उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहता था.
बाबर को उस लड़के से कितना प्यार था इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके नाम पर मस्जिद का नाम बाबरी रख दिया. कहानी बाबर के समलैंगिक होने की तरफ इशारा भी करती है. जानिए, बाबर के समलैंगिक रिश्ते की पूरी कहानी.
17 साल की उम्र में उस लड़के से हुआ प्यार
1483 में जन्मा बाबर हमेशा से ही खुद को तैमूर वंश का सबसे बेहतर और ताकतवर बादशाह घोषित करने की कोशिश में लगा था. समरकंद में 3 बार हार मिलने के बाद उसने भारत की ओर रुख किया. अपने जीवन की पूरी कहानी को उसने आत्मकथा बाबरनामा में दर्ज किया.
बाबर की उम्र मात्र 17 साल थी, जब पहली बार उसने उर्दू बाजार में उस लड़के को देखा. उस लड़के का नाम था बाबरी. बाबर ने लिखा, उसे देखते ही मैं आकर्षित हो गया. मैं उसके लिए पागल सा होने लगा. इससे पहले मैं कभी भी किसी के प्रति इतना आकर्षित नहीं हुआ. न तो ऐसा प्यार कभी हुआ. उसे देखकर मैं इस कदर शर्मा जाता था कि सीधे उसकी तरफ देख तक नहीं पाता था.
उसके सामने आते ही घबराने लगता था
बाबर ने लिखा कि मुझे कई बार वो ऐसे समय मिला जिस समय मैं दोस्तों के साथ जा रहा था. ऐसे में मैं उससे कैसे बात कर पाता. बाबर ने बाबरी के प्यार में लिखा- कोई आशिक, नंगे-खुद, बर्बाद मुझ जैसे न हो/और तुझ सा कोई बुत बेपरवाह बेरहम न हो.
अपने समलैंगिक प्यार के बारे में बाबर ने लिखा कि जब भी वो सामने आता था तो अजीब सी घबराहट होने लगती थी. मैं उससे शुक्रिया तक नहीं कह पाता था. मेरा अपने आप इतना जोर नहीं था कि उससे चार बातें कर सकूं. मुझमें मोहब्बत और जवानी का ऐसा नशा छाया हुआ था कि सुकून नहीं मिल रहा था. हर वक्त उसका चेहरा आंखों में छाया रहता था.
कौन था बाबरी जिसके प्यार में नंगे पैर घूमने लगा था बाबर
उसने लिखा, एक झलक पाने के लिए मैं नंगे पैर गलियों में घूमता रहता था. बगीचों में टहलने पहुंचता था. बाबर ने अपनी उस हालत को एक शेर के जरिए कुछ ऐसे बयां किया है-जाऊं, यह न कूवत रही, ठहरूं नहीं और ताब / क्या और तू ए दिल मुझे बेहाल करेगा.
एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बाबरी एक दास था, जिसे पकड़कर उज्बेकिस्तान लाया गया था. बाबर को उससे इस कदर प्यार हुआ कि 1499 में उसे कैंप बाजार से आजाद कराया. उसे अपने यहां अस्तबल को संभालने की जिम्मेदारी दी. उसे घुड़सवारी करना सिखाया. इस तरह दोनों के बीच रिश्ते और गहरे हो गए. नतीजा, बाबरी बाबर का सबसे विश्वसनीय इंसान बन गया.
लेकिन धीरे-धीरे बाबरी को अपने ऊपर गुरुर होने लगा. एक दिन ऐसा भी आया जब उसे बाबर से अलग होना पड़ा. 1507 में उसने बाबर के आदेश की अवहेलना की जिसके बाद उसे साम्राज्य को छोड़कर जाना पड़ा. हालांकि 1522 में वो एक बार फिर लौटा और एक जंग में बाबर की मदद भी की.