वृंदा वन में यमुना नदी किनारे में घाट श्रीकृष्ण को लेकर प्रसिद्ध है
यमुना नदी के तट पर स्थित चीर घाट को वह स्थल माना जाता है, जहां भगवान कृष्ण ने कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर स्नान करती हुई गोपिकाओं के वस्त्रों का हरण किया था। ऐसा माना जाता है कि यह वृक्ष भगवान कृष्ण की शरारतों का प्रतीक है, जो आज भी चीर घाट में स्थित है। इस कहानी के प्रति श्रद्धा के रूप में इस पेड़ की शाखाओं पर चीर बांधे जाते हैं। वास्तव में इस वृक्ष विशेष की ऐसी ख्याति है कि लोग आज भी इसकी पूजा करते हैं और प्रसाद बांटते हैं।
इस क्षेत्र में भगवान कृष्ण की सशक्त उपस्थिति को देखते हुए आज भी स्थानीय लोगों और पर्यटकों में इस बात को प्रचारित किया जाता है। इसलिए बृज रस या बृज का आनंद महत्वपूर्ण माना जाता है। एक शांत स्थल, चीर घाट, वृंदावन के आध्यात्मिक रस में रस लीन होने की एक अच्छी जगह है, क्योंकि यहां बैठकर आप नटखट भगवान कृष्ण और उनकी गोपिकाओं के बारे में चिंतन कर सकते हैं।
श्रीभ्रमरघाट- चीरघाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है। श्रीकेशीघाट- श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में यह प्रसिद्ध घाट विराजमान है।
वृंदावन में यमुना किनारे के इन घाटों का भी उल्लेख है- मदनटेर घाट, रामगोपाल घाट, नाभा घाट, करौली घाट, धूसर घाट, नया घाट, श्रीजी घाट, चुरवाला घाट, नागरीदास घाट, भीम घाट, टेहरीवाला घाट, नागरदास घाट, वर्द्धमान घाट, बरवाला घाट, रानापत घाट, गंगामोहन घाट, गोविंद घाट, हिम्मत बहादुर घाट, पंडावाला घाट, टिकारी घाट स्थित हैं। समय के बदलाव और विकास के नाम पर इनमें से अधिकतर घाट अपना अस्तित्व खो चुके हैं
सतयुग युग के दौरान, एक राक्षस ने पृथ्वी को अपनी कक्षा से हटाकर ब्रह्मांड के तल की गहराई में छिपा लिया था उस दौरान भगवान विष्णु ने जंगली सूअर के रूप में वराह अवतार लिया और उस राक्षस को मार कर पाताल से पृथ्वी को अपनी सूड़ पर उठाया और वापस अपनी कक्षा में स्थापित किया और वृन्दावन के इसी स्थान पर विश्राम किया था |वृंदावन के दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित प्राचीन वाराह घाट पर भगवान वाराह देव विराजमान हैं। यहीं पास ही गौतम मुनि का आश्रम है।
कालिया दमन घाट वृंदावन के सभी घाटों में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्रतम घाटों में से एक है। इसी घाट पर कृष्ण के जीवन और काल से जुड़ी एक बड़ी ऐतिहासिक घटना घटी थी। भगवान श्रीकृष्ण जब अपने सखाओं के साथ यमुना किनारे खेल रहे थे तो उनकी गेंद यमुना में पहुंच गई। उस समय यमुना में कालीय नाग रहता था जिसके कारण यमुना जल विषैला हो गया था।
कोई भी यहा यमुना में नहीं उतरता था। भगवान को तो अपनी लीला करनी थी। गेंद लाने के बहाने यमुना में छलाग लगा दी। सखाओं में हड़कंप मच गया। मैया यशोदा और नंदबाबा बेचैन थे। मगर कुछ ही देर में भगवान श्रीकृष्ण ने कालीय मर्दन कर उसे यमुना से चले जाने पर मजबूर कर दिया और कालीय नाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना से बाहर निकले। तब से इस घाट का नाम कालीय मर्दन घाट पड़ गया। यह वाराह घाट से लगभग आधे मील उत्तर में अवस्थित है।
सूरज या आदित्य घाट के नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण को कालीय नाग दमन के बाद ठंड लगने लगी। तब भगवान सूर्यदेव ने इसी घाट पर प्रखर तेज से श्रीकृष्ण को गर्माहट दी थी ।
तब श्रीकृष्ण को कुछ गर्माहट मिली और उनको पसीना आने लगा। यहां श्रीकृष्ण का पसीना यमुना में जाकर मिल गया। तब से मान्यता है कि इस घाट पर स्नान करने वालों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।