राजनीति का गिरता स्तर,भारतीय लोकतंत्र के लिये आत्मघाती।
वरिष्ठ पत्रकार चंदन कुमार सिंह
स्वतंत्र भारत में एक समय था राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों में प्रतिपक्ष की भूमिका अहम हुआ करती थीं। राजनीत से जुड़े हर व्यक्ति को पता है कि तात्कालिक प्रधानमंत्री स्व0 इन्दिरा गाँधी के कार्यकाल में अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष में रहते हुए भी स्व0 अटल बिहारी वाजपेयी गये थे। एक समय था महज एक मत के लिये केन्द्र सरकार गिर गया था ।लेकिन आज दर्जनों विधायकों को दल बदल करा कर सरकार बनाया जाता है ।विधायकों के खरीद फरोख्त का आलम यह है कि दोनों राष्ट्रीय दल अपने अपने विधायकों को अपने प्रभाव बाले राज्यों नजर बन्द कर सरकार को बचने या गिराने का काम करते है।और तो और कानून-व्यवस्था कि जिम्मेदारी जिनके पास है वह खुद भी इसमे शामिल हैं ।पं बंगाल की वह घटना जिसमें केंद्रीय पुलिस एवं राज्य पुलिस आमने-सामने खड़ा हो गया था ।यह घटना भारतीय राजनीति का कला अध्याय नहीं तो और क्या है?भारतीय राजनीति के पतन का आलम यह है कि पंचायत चुनाव से लेकर विधनसभा के गठन तक खुल्लम-खुल्ला खरीद फरोख्त होता हैं ।चाहे मंत्री पद या मुख्यमंत्री पद का प्रलोभन हो या प्रमुख उप प्रमुख का ।अगर समय रहते लोकतंत्र के रह्नुमा नहीं संम्भले तो वह दिन दुर नहीं जब केन्द्रीय सरकार के गठन में माननीय को विदेशी भूमि पर पनाह लेना परे ।लोकतंत्र के ठीकेदरो द्वारा धर्म ,जाति के आधार पर विद्वेष फैलाकर आम मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर दिया जाता है ।परिणामस्वरूप कोई जाति तो कोई धर्म मतदान कर देते है ।फलतःविकास का मुद्दा ढाक के तीन पात वाली कहावत को चरितार्थ करती हैं ।सत्ता की मलाई के लिये माननीय कब किधर पलटी मार दे किसी को भी पता नहीं ।एसे में विश्व का सर्वश्र