विक्रम सिंह रिपोर्टर
रामनगर (उत्तराखण्ड)-05,अक्टूबर 2025
गर्जिया माता मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में रामनगर के पास कोसी नदी के बीच में एक चट्टान पर स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. यह देवी पार्वती (गिरिजा) को समर्पित है और भक्त दर्शनों के लिए मंदिर तक पहुँचने के लिए 90 से अधिक सीढ़ियाँ चढ़ते हैं.
स्थान और पहुँच
यह मंदिर रामनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर, सुन्दरखाल गाँव के पास स्थित है.
मंदिर तक पहुँचने के लिए रामनगर से टैक्सी या बस का उपयोग किया जा सकता है.
निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर रेलवे स्टेशन (13 किमी दूर) और निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा या दिल्ली आईजीआई हवाई अड्डा है.
धार्मिक महत्व
गर्जिया माता मंदिर, माँ पार्वती (गिरिराज हिमालय की पुत्री) को समर्पित एक शक्ति मंदिर है.
मंदिर एक प्राकृतिक टीले पर बना है जो कोसी नदी के बीच में स्थित है.
मान्यता है कि यह महाभारत काल से जुड़ा है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, एक लोककथा के अनुसार, भगवान भैरव ने नदी के बीच बहते टीले को ‘ठहरो बहन’ कहकर रुकने का निवेदन किया था, जिसके बाद से माता वहीं निवास करती हैं.
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ-साथ नवरात्र, गंगा दशहरा, शिवरात्रि और अन्य त्योहारों पर यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
विशेषताएं
मंदिर तक पहुँचने के लिए कोसी नदी के ऊपर बना एक पुल पार करना होता है, जिसके बाद खड़ी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं.
मंदिर के दर्शन के बाद भक्तों द्वारा घंटी या छत्र चढ़ाए जाते हैं.
माता गर्जिया की पूजा के बाद भैरव देव के दर्शन करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है, यह मानते हुए कि इससे पूजा का पूर्ण फल मिलता है.
गर्जिया देवी मन्दिर उत्तराखण्ड में स्थित एक प्रसिद्ध मन्दिर है। यह मन्दिर सुन्दर खाल गाँव में आता है। रामनगर से इस मन्दिर की दूरी लगभग १५ किमी है। यह मन्दिर एक छोटी-सी पहाड़ी के शीर्ष पर बना हुआ है, जो कोसी नदी के मध्य में विराजमान है। यहां पर श्रद्धालु पूजा अर्चना व स्नान करने के लिए आते हैं। भारी बारिश के मौसम (जुलाई/अगस्त) में मंदिर को जाने वाला पुल बंद कर दिया जाता है।
गर्जिया देवी मन्दिर
देवी गिरिजा जो गिरिराज हिमालय की पुत्री तथा संसार के पालनहार भगवान शंकर की अर्द्धागिनी हैं, कोसी (कौशिकी) नदी के मध्य एक टीले पर यह मंदिर स्थित है। वर्ष १९४० तक इस मन्दिर के विषय में कम ही लोगों को ज्ञात था, वर्तमान में गिरिजा माता की कृपा से अनुकम्पित भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच गई है। इस मन्दिर का व्यवस्थित तरीके से निर्माण १९७० में किया गया। जिसमें मन्दिर के वर्तमान पुजारी पं० पूर्णचंद्र पाण्डे का महत्वपूर्ण प्रयास रहा है। इस मंदिर के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिये इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि को भी जानना आवश्यक है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
पुरातत्ववेत्ताओं का कथन है कि कूर्मांचल की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली के पास थी, जहां पर वर्तमान रामनगर बसा हुआ है। कोसी के किनारे बसी इसी नगरी का नाम तब वैराट पत्तन या वैराटनगर था। कत्यूरी राजाओं के आने के पूर्व यहां पहले कुरु राजवंश के राजा राज्य करते थे, जो प्राचीन इन्द्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली) के साम्राज्य की छत्रछाया में रहते थे। ढिकुली, गर्जिया क्षेत्र का लगभग ३००० वर्षों का अपना इतिहास रहा है, प्रख्यात कत्यूरी राजवंश, चंद राजवंश, गोरखा वंश और अंग्रेजी शासकों ने यहां की पवित्र भूमि का सुख भोगा है। गर्जिया नामक शक्तिस्थल सन १९४० से पहले उपेक्षित अवस्था में था, किन्तु सन १९४० से पहले की भी अनेक दन्तश्रुतियां इस स्थान का इतिहास बताती हैं। वर्ष १९४० से पूर्व इस मन्दिर की स्थिति आज की जैसी नहीं थी, कालान्तर में इस देवी को उपटा देवी (उपरद्यौं) के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन जनमानस की धारणा थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देख भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- “थि रौ, बैणा थि रौ। (ठहरो, बहन ठहरो), यहां पर मेरे साथ निवास करो, तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही है।
