क्रशर हवा में धूल और हानिकारक कण छोड़ते जिससे स्थानीय संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ता
विक्रम सिंह
हल्द्वानी ( उत्तराखण्ड ) -19,अक्टूबर 2025
स्टोन क्रशर का जन जीवन पर मुख्य रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसे कि वायु और ध्वनि प्रदूषण, स्वास्थ्य समस्याएं, कृषि और जल स्रोतों को नुकसान। ये क्रशर हवा में धूल और हानिकारक कण छोड़ते हैं, जिससे श्वसन संबंधी रोग होते हैं, और तेज आवाज से तनाव, सिरदर्द और अन्य मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं। इसके अतिरिक्त, इनका निर्माण और संचालन अक्सर नदी के जल स्तर को कम करता है, फसलों को नुकसान पहुंचाता है और जल स्रोतों को दूषित करता है, जिससे स्थानीय संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
क्रशर से निकलने वाली धूल सांस लेने में मुश्किल पैदा करती है और श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बनती है।
अन्य स्वास्थ्य समस्याएं : लोगों को आंखों में जलन, त्वचा रोग और सिरदर्द जैसी समस्याएं भी होती हैं।
मानसिक तनाव : तेज शोर के कारण चिंता, चिड़चिड़ापन, तनाव, अनिद्रा और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं हो सकती हैं
वायु प्रदूषण : स्टोन क्रशर वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत हैं, जिससे हवा में धूल और कण फैलते हैं।
भूमि और मिट्टी पर प्रभाव : क्रशिंग और डंपिंग के कारण मिट्टी की उत्पादकता कम हो सकती है।
जल स्रोतों को नुकसान : नदी के प्रवाह को मोड़ने, जल स्तर को कम करने और जल की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाने के मामले सामने आए हैं।
कृषि पर प्रभाव : धूल के कारण फसलों को नुकसान पहुंचता है और उपजाऊ भूमि खराब होती है।
वन्यजीवों और वनस्पति पर प्रभाव : क्रशर के आसपास निवास स्थान का विनाश होता है, जिससे वन्यजीव और वनस्पति प्रभावित होते हैं।
आवागमन में बाधा : क्रशर से उड़ने वाली धूल राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवागमन को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे दृश्यता कम होती है।
सामाजिक संघर्ष : जल और अन्य संसाधनों के बंटवारे को लेकर सामाजिक संघर्ष भी उत्पन्न हो सकते हैं।
नदी तल का अतिक्रमण : स्थानीय लोग नदी तल और आसपास की भूमि का उपयोग चरने या अन्य गतिविधियों के लिए करते हैं, जिसे क्रशर सामग्री के डंपिंग ग्राउंड में बदला जा सकता है।









