बिहार के करक IAS – डॉ. गौतम गोस्वामी की पूरी कहानी पी न्यूज पर देखिए
बिहार के प्रशासनिक जगत में एक ऐसा नाम दर्ज है, जिसे लोग आज भी उसकी बुद्धिमत्ता, कार्यशैली, साहस और दुखद अंत के कारण याद करते हैं।
उनका नाम है — डॉ. गौतम गोस्वामी, IAS।
एक ऐसा अफसर, जो जितना तेज़ दिखता था, उतना ही गहरा उसका संघर्ष भी था।
डॉक्टर से IAS बनने की अनोखी यात्रा
बचपन से ही गौतम असाधारण रूप से मेधावी थे।
उन्होंने एमबीबीएस करके डॉक्टर बनने का रास्ता चुना,
पर जल्द ही महसूस किया कि समाज की समस्याओं को जड़ से ठीक करने के लिए एक चिकित्सक से अधिक एक प्रशासक की भूमिका ज़रूरी है।
इसी सोच से प्रेरित होकर उन्होंने UPSC की तैयारी की, और UPSC में शानदार रैंक लाकर 1991 बैच में IAS बने।
उनकी प्रतिभा को देखकर प्रशिक्षक अक्सर कहते थे:
> “यह लड़का एक दिन बड़े काम करेगा।”
रोसड़ा के SDO: सख़्त, करक और जनता के बीच लोकप्रिय
समस्तीपुर जिले के रोसड़ा SDO के रूप में उनकी पोस्टिंग ने उन्हें जनता के समक्ष में अलग पहचान दिलाई।
वे
अवैध कारोबार पर त्वरित कार्रवाई
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस
जनता की शिकायतों पर तत्काल समाधान
और कानून-व्यवस्था के सख्त पालन
के कारण बेहद चर्चित हुए।
यही वह समय था जब जनता ने उन्हें नाम दिया
“करक अफसर”
यानी जो नियम तोड़ने वालों को बिल्कुल नहीं छोड़ता।
प्रोटोकॉल विवाद — आडवाणी के काफिले वाला प्रकरण
डॉ. गौतम गोस्वामी के करियर का पहला बड़ा विवाद उस समय चर्चा में आया जब
उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के काफिले के दौरान उन्होंने प्रोटोकॉल नियमों का सख्ती से पालन कराया।
सूत्रों के अनुसार
कुछ वाहन सुरक्षा नियमों का उल्लंघन कर रहे थे।
गौतम गोस्वामी ने बिना किसी दबाव के उन वाहनों को रोका और सुरक्षा जांच का आदेश दिया।
भाजपा खेमे ने इसे “अत्यधिक हस्तक्षेप” कहा।
बात राजनीतिक रंग ले गई।
लेकिन गौतम हमेशा अपने निर्णय पर कायम रहे और कहा—
> “सुरक्षा कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे पद कितना भी बड़ा हो।”
उनकी यह निडरता जितनों को पसंद आई, उतने ही लोग उनसे नाराज़ भी होने लगे।
2004 की बाढ़ और राष्ट्रीय पहचान — Time Magazine का सम्मान
साल 2004 में बिहार भयंकर बाढ़ से जूझ रहा था।
उस संकट के समय डॉ. गौतम गोस्वामी ने जो नेतृत्व दिखाया, वह दुर्लभ था।
राहत शिविरों का तेज संचालन
भोजन, पानी, दवाइयों की सप्लाई
मेडिकल कैंप
लगातार फील्ड मॉनिटरिंग
भ्रष्टाचार को रोकने के प्रयास
उन्होंने राहत कार्य को युद्धस्तर पर चलाया।
उनके प्रयासों की वजह से हजारों जानें बचीं।
इसी कारण Time Magazine ने उन्हें
“Young Asian Hero”
कहते हुए सम्मानित किया।
यह उनके करियर का स्वर्णिम क्षण था।
सबसे बड़ा विवाद — बाढ़ राहत घोटाला
उसी बाढ़ राहत कार्य के बीच उन पर गंभीर आरोप लगाए गए।
कहा गया कि राहत सामग्री की खरीद में अनियमितता हुई।
कुछ सप्लाई में गड़बड़ी बताई गई।
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा होने लगी कि
क्या वे तेज़ काम करने के कारण कुछ लोगों को असहज कर रहे थे?
क्या उन्हें निशाना बनाया गया?
या वाकई अनियमितता हुई?
मामला बड़ा हुआ और उन्हें निलंबित कर दिया गया।
यही वह मोड़ था जिसने उनके जीवन को बदल दिया।
बीमारी और संघर्ष — तीन मोर्चों पर लड़ाई
निलंबन और जांच के बीच
गौतम गोस्वामी पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित हो गए।
एक ओर
राजनीतिक दबाव
जांच एजेंसियों का पीछा
मीडिया की आलोचना
दूसरी ओर
जानलेवा बीमारी
मानसिक तनाव
परिवार की चिंता
फिर भी वे लगातार कहते रहे—
> “मैंने कोई गलत काम नहीं किया।”
आखिरकार उनकी खराब हालत देखते हुए सरकार ने निलंबन समाप्त कर दिया।
अंतिम समय — एक उज्ज्वल सितारे का बुझ जाना
6 जनवरी 2009
पटना के एक अस्पताल में
डॉ. गौतम गोस्वामी ने अंतिम सांस ली।
बहुत कम उम्र में,
बहुत बड़े सपनों के साथ
एक तेज़तर्रार अधिकारी दुनिया को अलविदा कह गया।
गौतम गोस्वामी की विरासत — सवाल, संघर्ष और साहस
उनकी कहानी सिर्फ एक IAS की कहानी नहीं,
बल्कि एक साहसी मनुष्य और सिस्टम के टकराव की कहानी है।
वे प्रतिभाशाली थे
वे तेज़ थे
वे ईमानदार थे
वे विवादों में घिरे
वे राजनीति की मार झेल गए
वे बीमारी से लड़ते रहे
और अंत में बहुत जल्दी चले गए
उनकी यात्रा हमें सिखाती है कि
बहुत तेज़ चमकने वाले सितारे कभी-कभी बहुत जल्दी बुझ जाते हैं।
निष्कर्ष
आज भी बिहार में लोग कहते हैं —
“डॉ. गौतम गोस्वामी जैसा करक, तेज़ और हिम्मती अफसर दोबारा नहीं मिला।”








