रविवार को पटना मेट्रो ने इतिहास रच दिया. पहली बार मेट्रो ट्रेन डिपो से बाहर निकली और पाटलिपुत्रा बस टर्मिनल स्टेशन से भूतनाथ स्टेशन तक करीब 3.5 किलोमीटर का सफर तय किया. धीमी रफ्तार से हुई यह यात्रा दरअसल सुरक्षा मानकों की जांच के लिए थी.
ट्रायल रन के दौरान ट्रैक, पावर सप्लाई और बोगियों की क्षमता का परीक्षण किया गया. अधिकारियों का कहना है कि यह ट्रायल वाणिज्यिक संचालन की दिशा में पहला कदम है.
पटना मेट्रो का परिचालन शुरू होने से पहले रविवार का दिन बेहद खास रहा. डिपो के भीतर पहले ही ट्रायल हो चुका था, लेकिन यह पहली बार था जब ट्रेन एलिवेटेड ट्रैक पर चली. इस दौरान मेट्रो की रफ्तार मात्र साढ़े तीन से चार किलोमीटर प्रति घंटे रखी गई, ताकि हर तकनीकी पहलू को बारीकी से परखा जा सके. पाटलिपुत्रा बस टर्मिनल से जीरो माइल होते हुए मेट्रो भूतनाथ स्टेशन तक गई.
इस ट्रायल रन का मकसद केवल ट्रेन चलाना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की क्षमता का आकलन करना था. अधिकारियों ने ओवरहेड इलेक्ट्रिफिकेशन सिस्टम की जांच की, जो मेट्रो को ऊर्जा देता है. ट्रैक की एलाइनमेंट, स्थिरता और सुरक्षा का भी परीक्षण हुआ. रोलिंग स्टॉक यानी मेट्रो बोगियों की फिटनेस देखी गई और पावर सप्लाई की गुणवत्ता की जांच की गई. कुल मिलाकर यह ट्रायल आने वाले संचालन के लिए आधार साबित होगा.

बीते दो सितंबर को मेट्रो को डिपो के भीतर चलाकर परीक्षण किया गया था. रविवार का ट्रायल उससे आगे का चरण था, जिसे सेफ्टी ट्रायल कहा गया. इसी माह के अंत तक मेट्रो का औपचारिक उद्घाटन होने की संभावना है. ऐसे में यह ट्रायल पटना मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए बेहद अहम साबित हुआ है.
ट्रायल रन के दौरान मेट्रो के डिब्बे जैसे ही एलिवेटेड ट्रैक पर दौड़े, आसपास खड़े लोग उत्साहित हो उठे. जिन लोगों ने इसे देखा, अधिकारी भी ट्रायल के दौरान मौजूद रहे और उन्होंने इसे अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया. यह परीक्षण न केवल तकनीकी तौर पर सफल रहा, बल्कि आम नागरिकों की उम्मीदों को भी नई ऊर्जा दे गया.
फिलहाल मेट्रो को एलिवेटेड कॉरिडोर पर तीन से चार बार और चलाया जाएगा. सोमवार को रात के समय भी मेट्रो को दौड़ा कर देखा जाएगा, ताकि अलग-अलग परिस्थितियों में सिस्टम की जांच हो सके. अगर सब कुछ तय योजना के अनुसार चला तो जल्द ही इसका परिचालन शुरू कर दिया जाएगा.
