चापाकल मिस्त्री के एक बेटा इंजीनियर, दूसरा लोको पायलट और तीसरा असम राइफल्स का जवान बना
बिहार के गया के खरखुरा तरवाना गांव के रहने वाले अजय प्रसाद की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है. आर्थिक तंगी और निरक्षरता के बावजूद उन्होंने अपने तीन बेटों को नौकरी के ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया हैं. 1990 से चापाकल मिस्त्री का काम शुरू करने वाले अजय ने कभी हार नहीं मानी और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया. उनकी जिंदगी की शुरुआत बेहद कठिन थी, लेकिन उनके हौसले ने उन्हें एक मिसाल बना दिया.
अक्षर ज्ञान से अनजान, फिर भी बेटों को दी राह: अजय प्रसाद को खुद अक्षरों का ज्ञान नहीं था. ककहरे तक की जानकारी न होने के बावजूद उन्होंने अपने बेटों को पढ़ाई-लिखाई का महत्व समझाया. उनके लिए यह आसान नहीं था, क्योंकि आर्थिक तंगी ने हर कदम पर चुनौतियां खड़ी कीं. फिर भी, उन्होंने अपने बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता दी और उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने का संकल्प लिया.
पेट काटकर पूरी की बेटों की पढ़ाई: अजय प्रसाद ने अपने तीनों बेटों की पढ़ाई के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. सरकारी स्कूलों के साथ-साथ प्राइवेट स्कूल और कोचिंग की फीस का इंतजाम करना उनके लिए आसान नहीं था. इसके बावजूद, उन्होंने अपने खर्चों में कटौती की और बच्चों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया. उनकी मेहनत रंग लाई और तीनों बेटों ने नौकरी हासिल की.
तीन बेटों को मिला शानदार मुकाम: अजय प्रसाद के तीनों बेटों ने उनकी मेहनत को सार्थक किया. बड़ा बेटा अमित कुमार रेलवे में लोको पायलट है और वर्तमान में कोलकाता में तैनात है. मंझला बेटा मंटू कुमार रेलवे में इलेक्ट्रीशियन इंजीनियर के पद पर कार्यरत है, जबकि छोटा बेटा सुजीत कुमार असम राइफल्स में सेवारत है. तीनों बेटों की सफलता अजय की मेहनत का जीता-जागता सबूत है.
20 साल का अथक संघर्ष: अजय प्रसाद ने 20 साल तक लगातार संघर्ष किया. निरक्षर होने के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी को बखूबी समझा. इस दौरान उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी. उनकी मेहनत और लगन ने उनके बच्चों को वह मुकाम दिलाया, जिसका सपना हर पिता देखता है.
पत्नी विमला देवी का अमूल्य सहयोग: अजय प्रसाद की सफलता में उनकी पत्नी विमला देवी का भी बड़ा योगदान रहा. आर्थिक तंगी के दौर में विमला ने हर कदम पर उनका साथ दिया. एक-एक रुपये जोड़कर उन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए संसाधन जुटाए. विमला की मेहनत और समर्पण ने अजय के सपनों को हकीकत में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आज भी कर रहे हैं चापाकल मिस्त्री का काम: अजय प्रसाद का मानना है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता. तीनों बेटों के नौकरी पाने के बाद भी वे आज भी चापाकल मरम्मत का काम करते हैं. पहले जहां उन्हें 50 रुपये मिलते थे, वहीं समय के साथ मेहनताने में बढ़ोतरी हुई लेकिन उनकी मेहनत और लगन में कभी कमी नहीं आई. वे इसे अपनी आजीविका का हिस्सा मानते हैं.
“मेरे तीन बेटे और एक बेटी है, लेकिन सभी को नौकरी में भेजने की तमन्ना थी. तीन बेटों की नौकरी लग चुकी है. अब एक बेटी की भी नौकरी की ओर है. इंसान चाहे तो मेहनत और हौसलों के बूते अपने तकदीर को बदल सकता है और हमने वही किया. विपरीत हालातो के बीच हमने हौसला बनाए रखा और हौसलों को उड़ान मिली. यही वजह है, कि आज हमारे तीनों बेटे नौकरी में हैं. आज भी मैं चापाकल मिस्त्री का काम करता हूं और अपनी ड्यूटी समय से जाता हूं.”-अजय प्रसाद, चापाकल मिस्त्री
छोटी बेटी स्वीटी की उड़ान: अजय प्रसाद की प्रेरणा सिर्फ उनके बेटों तक सीमित नहीं है. उनकी सबसे छोटी बेटी स्वीटी कुमारी भी अब नौकरी की राह पर है. अजय और उनकी पत्नी ने अपनी बेटी को भी वही अवसर प्रदान किए, जो उनके बेटों को मिले. यह दर्शाता है कि अजय ने अपने बच्चों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया और सभी को समान रूप से प्रोत्साहित किया.
