भूक्सा जनजाति हिमालय की तलहटी के तराई और भाबर क्षेत्रों में पाई जाती भूक्सा जनजाति स्वयं को पंवारवंशीय राजपूत मानते

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विक्रम सिंह रिपोर्टर
हल्द्वानी (उत्तराखण्ड) – 03,अक्टूबर 2025
उत्तराखंड की बुक्सा (भोक्सा) जनजाति हिमालय की तलहटी के तराई और भाबर क्षेत्रों में पाई जाती है, विशेष रूप से देहरादून, नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल और उधम सिंह नगर जिलों में निवास करती है। ये लोग स्वयं को पंवारवंशीय राजपूत मानते हैं और इनका मुख्य पेशा कृषि व पशुपालन है। इनकी अपनी भाषा, परंपराएं और धार्मिक मान्यताएं हैं, जिनमें मां बाल सुंदरी देवी की पूजा शामिल है।

निवास स्थान

बुक्सा जनजाति उत्तराखंड के तराई और भाबर क्षेत्रों में, जैसे देहरादून, नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल और उधम सिंह नगर जिलों में निवास करती है।

वे मुख्य रूप से बाजपुर,गदरपुर, रामनगर, दुगड्डा, देहरादून जनपद के डोईवाला, विकास नगर, सहसपुर तथा हरिद्वार के बहादराबाद विकास खंडों में पाई जाती हैं।

संस्कृति और जीवनशैली

सामाजिक पहचान

बुक्सा जनजाति के लोग स्वयं को पंवारवंशीय राजपूत मानते हैं।

आर्थिक गतिविधियाँ

उनका पारंपरिक पेशा कृषि और पशुपालन है, जिसमें भेड़ पालन शामिल है।

भाषा

बुक्सा जनजाति की अपनी मुख्य भाषा ‘बुक्सा’ है, जो हिंदी और कुमाऊँनी का मिश्रण है।

धार्मिक प्रथाएँ

ये मां बाल सुंदरी देवी को अपनी सबसे पूज्य देवी मानते हैं, जिनका प्रसिद्ध मेला काशीपुर में लगता है।

परंपराएं

शादी, होली और दीपावली जैसे उत्सव इनके रीति-रिवाजों में शामिल हैं।

कला और शिल्प

डलैया बुनना और चटाई बुनना इनकी परंपरागत कला है। वे झालरे, मेज पोसे, स्वेटर और आभूषण भी बनाते हैं।

विशेषताएँ

जनजातीय दर्जा

बुक्सा समुदाय को उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है।

ऐतिहासिक योगदान

तराई क्षेत्र को आबाद करने में बुक्सा जनजाति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

आधुनिक प्रभाव

गैर-जनजातीय लोगों के संपर्क में आने के कारण पारंपरिक विवाह पद्धति में बदलाव आ रहा है, और आधुनिक विवाहों का प्रचलन बढ़ रहा है।

Kaushal kumar
Author: Kaushal kumar

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