पारंपरिक रूप से तिब्बत से ऊन और ऊनी उत्पादों के आयात पर निर्भर
आधुनिक कपड़ों और ऊन की कमी के कारण इस पारंपरिक हथकरघा उद्योग को भारी नुकसान हुआ
विक्रम सिंह रिपोर्टर
पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड) – 04, अक्टूबर 2025
पिथौरागढ़ का ऊनी वस्त्र व्यवसाय पारंपरिक रूप से तिब्बत से ऊन और ऊनी उत्पादों के आयात पर निर्भर रहा है, जहाँ से भोटिया समुदाय के लोग तिब्बती नमक, पश्मीना और अन्य सामानों का व्यापार करते थे। हालाँकि, हाल के वर्षों में, आधुनिक कपड़ों और ऊन की कमी के कारण इस पारंपरिक हथकरघा उद्योग को भारी नुकसान हुआ है।
ऐतिहासिक संदर्भ
व्यापार मार्ग
पिथौरागढ़ के भोटिया क्षेत्र की सीमा पर कई पहाड़ी दर्रे हैं जो तिब्बत से जुड़ते हैं। इन दर्रों ने भारत और तिब्बत के बीच हजारों सालों से ऊन, पश्मीना, नमक और बोरेक्स जैसे सामानों के व्यापार को संभव बनाया।
स्थानीय समुदाय
पिथौरागढ़ के हाइलैंड्स या भोट प्रदेश में रहने वाले भोटिया समुदाय पारंपरिक रूप से तिब्बत से ऊन और ऊनी उत्पाद आयात करते थे और उनसे शॉल, कालीन और अन्य वस्त्र बनाते थे।
वर्तमान स्थिति
कमी और संकट
आधुनिकता के कारण मशीन-निर्मित चमकदार कपड़ों की मांग बढ़ी है, जिससे पारंपरिक हथकरघा उद्योग को झटका लगा है। तिब्बती ऊन की कमी और कड़े व्यापार नियमों ने इस संकट को और गहरा कर दिया है।
स्थानीय उत्पादन
पिथौरागढ़ के स्थानीय उत्पादक, विशेष रूप से शौका समुदाय, हाथ से ऊनी कपड़े और शॉल बुनते हैं, लेकिन तिब्बती ऊन की कमी ने उनके व्यवसाय को भी प्रभावित किया है।
संक्षेप में, पिथौरागढ़ का ऊनी वस्त्र व्यवसाय ऐतिहासिक रूप से तिब्बत से जुड़े व्यापार पर आधारित रहा है, लेकिन अब उसे कच्चे माल की कमी और बाजार में बदलते रुझानों के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
