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पिन्टू परदेशी ने हरित मिथिला महाकुम्भ में 20 मई को आखिरी शाही स्नान के लिए श्रद्धालुओं एवं साधु संतों को किया आमंत्रित*

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*पिन्टू परदेशी ने हरित मिथिला महाकुम्भ में 20 मई को आखिरी शाही स्नान के लिए श्रद्धालुओं एवं साधु संतों को किया आमंत्रित*

 

समस्तीपुर। मिथिलांचल की हृदय स्थली का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले समस्तीपुर जिला का अंग हसनपुर विधानसभा के बिथान प्रखंड स्थित त्रिवेणी संगम घाट जगमोहरा में मिथिला महाकुम्भ का भव्य आयोजन 10 मई से लेकर 20 मई तक किया जा रहा है, जहाँ संयोजक पिन्टू परदेशी के द्वारा 20 मई को आखरी शाही स्नान के लिए श्रद्धालु एवं साधु संतों को विशेष आमंत्रित किया गया है। मिथिला महाकुम्भ सेवा समिति के संयोजक पिन्टू परदेशी पिछले ढ़ाई सालों से हरित मिथिला महाकुम्भ की सफलता का प्रचार अभियान करते आ रहे थे। जिसका परिणाम स्वरूप आज मिथिला महाकुम्भ स्नान के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब की भीड़ बिथान के त्रिवेणी संगम घाट जगमोहरा में देखने को मिल रहा है। पिन्टू परदेशी ने बताया कि हरित मिथिला महाकुम्भ में आने के लिए समस्तीपुर रेल मंडल के समस्तीपुर जक्शन व खगड़िया जक्शन के मध्य हसनपुर रोड जक्शन रेलवे स्टेशन व हसनपुर चीनी मिल चौक से 18 किलोमीटर पूर्व की दिशा में अवस्थित हरित महाकुम्भ के त्रिवेणी संगम घाट जगमोहरा श्रद्धालु नीजी वाहन या प्राइवेट वाहन के द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। वहीं मिथिला महाकुम्भ के संयोजक पिन्टू परदेशी कहते हैं बिहार की सांस्कृतिक राजधानी “मिथिलांचल में पग-पग पोखर माछ मखान, सरस बोल मुस्की मुख पान, इ छी मिथिला के पहचान” मिथिला के ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर को फिर से पुनर्जीवित करने के लिये हरित मिथिला महाकुंभ के संयोजक पिन्टू परदेसी अनवरत कई वर्षों से इस अभियान को लेकर बिहार के विभिन्न हिस्सों में लोगों तक पहुंच रहे थे। अभियान का उद्देश्य है, मिथिलांचल की संस्कृति विकास, स्वरोजगार, आध्यात्मिक ज्ञान विकास, रोजगार, स्वास्थ्य पर्यटन केंद्र बनाना। उन्होंने कहा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पूरब में कोशी तथा पश्चिम में गंडक से घिरा लगभग छह हजार वर्ग किलोमीटर का वह क्षेत्र जिसमें बिहार के पूर्णियां, कोशी, गंगा का उत्तरवतीं भागलपुर एवं मुंगेर, दरभंगा तथा तिरहुत प्रमंडल और कोशी और गंडक के मध्य विस्तृत नेपाल का तराई प्रदेश शामिल है, जो मिथिलांचल के नाम से प्रसिद्ध है। यहां निवास करने वाले लोग मिथिलावासी कहलाते हैं।

Kaushal kumar
Author: Kaushal kumar

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